Shayri + Pics























Jokes Tooooooooooo Shayri
Bhar Dooooooooooo  Diary
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*_Iss tarah ghaor se mat dekh mere haath ko  Faraaz........._*                                                 
*_In lakeeron mein hasraton ke siwa Kuchh bhie nahi*_



*अब* वफा की *उम्मीद* भी 
         किस से करे भला 
            *मिटटी* के बने लोग 
               *कागजो* मे बिक जाते है।

 *रिश्ते* आजकल *रोटी*
         की *तरह*हो गए है
            जरा सी आंच *तेज* क्या हुई 
            *जल* भुनकर *खाक* हो जाते।


      
 जो लडकियाँ School में मुझसे कहती थी कि शक्ल देखी है अपनी
आज उन्हीं लडकियों के Husband  देखकर
दिल को सुकून मिलता है..


*APJ Abdul Kalams's Messages to Start your day Beautifully -*_

*1. जिदंगी मे कभी भी किसी को*
      *बेकार मत समझना,क्योक़ि*
        *बंद पडी घडी भी दिन में* 
          *दो बार सही समय बताती है।*

*2. किसी की बुराई तलाश करने*
     *वाले इंसान की मिसाल उस*
       *मक्खी की तरह है जो सारे*
        *खूबसूरत जिस्म को छोडकर* 
          *केवल जख्म पर ही बैठती है।*

*3. टूट जाता है गरीबी मे*
      *वो रिश्ता जो खास होता है,*
        *हजारो यार बनते है* 
          *जब पैसा पास होता है।*

*4. मुस्करा कर देखो तो* 
      *सारा जहाॅ रंगीन है,*
       *वर्ना भीगी पलको*
          *से तो आईना भी*
             *धुधंला नजर आता है।*

*5..जल्द मिलने वाली चीजे* 
      *ज्यादा दिन तक नही चलती,*
        *और जो चीजे ज्यादा* 
           *दिन तक चलती है*
            *वो जल्दी नही मिलती।*

*6. बुरे दिनो का एक* 
      *अच्छा फायदा* 
         *अच्छे-अच्छे दोस्त* 
            *परखे जाते है ।*

*7. बीमारी खरगोश की तरह* 
      *आती है और कछुए की तरह*
        *जाती है;*
          *जबकि पैसा कछुए की तरह* 
             *आता है और.खरगोश की*
             *तरह जाता है ।*

*8. छोटी छोटी बातो मे* 
      *आनंद खोजना चाहिए*
        *क्योकि बङी बङी तो* 
          *जीवन मे कुछ ही होती है।*

*9. ईश्वर से कुछ मांगने पर* 
      *न मिले तो उससे नाराज*
       *ना होना क्योकि ईश्वर* 
           *वह नही देता जो आपको* 
            *अच्छा लगता है बल्कि*
            *वह देता है जो आपके लिए*
                    *अच्छा होता है*

*10. लगातार हो रही* 
        *असफलताओ से निराश* 
           *नही होना चाहिए क्योक़ि* 
           *कभी-कभी गुच्छे की आखिरी*
           *चाबी भी ताला खोल देती है।*

*11. ये सोच है हम इसांनो की* 
        *कि एक अकेला* 
          *क्या कर सकता है*
             *पर देख जरा उस सूरज को*
           *वो अकेला ही तो चमकता है।*

*12. रिश्ते चाहे कितने ही बुरे हो* 
        *उन्हे तोङना मत क्योकि*
          *पानी चाहे कितना भी गंदा हो*
           *अगर प्यास नही बुझा सकता*
             *वो आग तो बुझा सकता है।*

*13. अब वफा की उम्मीद भी* 
        *किस से करे भला* 
            *मिटटी के बने लोग* 
               *कागजो मे बिक जाते है।*

*14. इंसान की तरह बोलना* 
         *न आये तो जानवर की तरह*
             *मौन रहना अच्छा है।*

*15. जब हम बोलना* 
         *नही जानते थे तो* 
           *हमारे बोले बिना'माँ*'
     *हमारी बातो को समझ जाती थी।*
            *और आज हम हर बात पर* 
                 *कहते है छोङो भी 'माँ'*
                  *आप नही समझोंगी।*

*16. शुक्र गुजार हूँ* 
        *उन तमाम लोगो का* 
           *जिन्होने बुरे वक्त मे*
             *मेरा साथ छोङ दिया*
                 *क्योकि उन्हे भरोसा था*
                   *कि मै मुसीबतो से*
              *अकेले ही निपट सकता हूँ।*

*17. शर्म की अमीरी से*
         *इज्जत की गरीबी अच्छी है।*

*18. जिदंगी मे उतार चङाव* 
         *का आना बहुत जरुरी है* 
          *क्योकि ECG मे सीधी लाईन* 
            *का मतलब मौत ही होता है।*

*19. रिश्ते आजकल रोटी*
        *की तरह हो गए है*
            *जरा सी आंच तेज क्या हुई*
            *जल भुनकर खाक हो जाते।*

*20. जिदंगी मे अच्छे लोगो की*
        *तलाश मत करो* 
          *खुद अच्छे बन जाओ*
            *आपसे मिलकर शायद*
               *किसी की तालाश पूरी हो।*

_"रब"  ने.  नवाजा   हमें.  जिंदगी.  देकर;_
_और.  हम.  "शौहरत"  मांगते   रह   गये;_

_जिंदगी  गुजार  दी  शौहरत.  के  पीछे;_
_फिर   जीने   की  "मौहलत"   मांगते   रह गये।_

_ये   कफन ,  ये.  जनाज़े,   ये   "कब्र" सिर्फ.  बातें   हैं.  मेरे   दोस्त,,,_
_वरना   मर   तो   इंसान   तभी   जाता  है जब  याद  करने  वाला  कोई   ना. हो...!!_

_ये  समंदर   भी.  तेरी   तरह.  खुदगर्ज़ निकला,_
_ज़िंदा.  थे.  तो.  तैरने.  न.  दिया.  और मर.  गए   तो   डूबने.  न.  दिया . ._

_क्या.  बात   करे   इस   दुनिया.  की_
_"हर.  शख्स.  के   अपने.  अफसाने.  हे"_

_जो   सामने.  हे.  उसे   लोग.  बुरा   कहते.  हे,_
_जिसको.  देखा.  नहीं   उसे   सब   "खुदा".  कहते.   है.


कोई नही देगा साथ तेरा यहॉं
  हर कोई यहॉं खुद ही में मशगुल है
 जिंदगी का बस एक ही ऊसुल है यहॉं,
         तुझे गिरना भी खुद है
       और सम्हलना भी खुद है..
तू छोड़ दे कोशिशें..
        इन्सानों को पहचानने की...!
यहाँ जरुरतों के हिसाब से ..
            सब बदलते नकाब हैं...!
अपने गुनाहों पर सौ पर्दे डालकर.
                 हर शख़्स कहता है-
    " ज़माना बड़ा ख़राब है।"

जो दिलो में शिकवे और
जुबान पर शिकायते कम रखते है,
वो लोग हर रिश्ता निभाने का दम रखते हैं।

उन्हें सूकून नहीं
मुझको परेशान पाकर
मैं परेशान हूँ कि उन्हें सुकून नहीं।


ठण्डा चूल्हा देखकर रात गुजारी उस गरीब ने,
कमबख्त आग थी की पेट में रात भर जलती रही !!

उम्र ज़ाया कर दी लोगों ने औरों के वजूद में नुक़्स निकालते निकालते।
इतना  ही खुद को तराशा होता तो फ़रिश्ते बन जाते।
Dr. Rahat Indori

निशाने चूक गए सब निशान बाकी है, 
शिकारगाह में खाली मचान बाकी है.. 
फिर एक बच्चे ने लाशों के ढेर पर चढ़कर, 
ये कह दिया के अभी खानदान बाकी है.।

मैं तेरे साथ, तू किसी के साथ।
हमसफ़र मैं भी, हमसफ़र तू भी।

खो गई है मेरे महबूब के चेहरे की रौनक।

चाँद निकले तो जरा उसकी तलाशी लेना।


[9/26, 10:21 PM] Dsp.
कितने चालाक है कुछ मेरे अपने भी ,
तोहफे में घड़ी तो दी मगर कभी वक़्त नही दिया। 
चुप थे तो चल रही थी ज़िँदगी लाज़वाब।
ख़ामोशियाँ बोलने लगीं तो बवाल हो गया..!!

क्या खूब रंग दिखाती है जिंदगी क्या इक्तेफ़ाक होता है,
प्यार में ऊम्र नही होती पर…. हर ऊम्र में प्यार होता है|

घर का आईना भी,                                                         हक़ ज़ता रहा है.
ख़ुद तो वैसा ही है,
उम्र मेरी बता रहा है.

मै पत्थर हूं कि मेरे सर पे  ये इल्ज़ाम आता है
कहीं भी आइना टूटे मेरा ही नाम आता है
एक मैं हूँ कि समझा नहीँ
खुद को आज तक
एक दुनिया है कि न जाने मुझे
क्या-क्या समझ लेती है।
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DAs & DRk
गुजरी हुई जिंदगी को कभी याद ना कर।
तकदीर में जो लिखा है उसकी फरियाद ना कर
जो होगा वो होकर रहेगा तु कल की फिकर में अपनी आज की हंसी बर्बाद ना कर।

हंस मरते हुए भी गाता है और
मोर नाचते हुए भी रोता है।
ये जिंदगी का फंडा है
दुखो वाली रात नींद नहीं आती
और खुशी वाली रात कौन सोता है।
       
इश्क़ होना भी लाज़मी है शायरी लिखने के लिए वरना
कलम ही लिखती तो हर  स्कुल का टिचर ग़ालिब होता

नाम तेरा जुबाँ पर आ ही जाता है..
जब भी कोई मुझसे मेरी आखिरी ख्वाहिश पूछता है

बहुत सोचकर अपनो से रूठा करो                   

आज कल मनाने का रिवाज खत्म हो गया है।

[11/28, 12:45 PM]: 
_Aaj ek aur baras biit gayā us ke baġhair_
_jis ke hote hue hote the zamāne mere_. 

नींद भी नीलाम हो जाती है बाजार-ए-इश्क में
किसी को भूलकर सो जाना,आसान नहीं होता।

_Agar tumhārī anā hī kā hai sawāl to phir_
_Chalo maiñ haath badhātā huñ muhabbat ke liye_ 

_Aur 'farāaz' chāhiyeñ kitnī mohabbateñ tujhe_
_Maaoñ ne tere naam par bachchoñ kā naam rakh diyā_ 

_Aisī tārīkiyāñ āñkhoñ meñ basī haiñ ki 'farāaz'_
_Raat to raat hai ham din ko jalāte haiñ charāġh_

_Bahot dinoñ se nahīñ hai kuchh us kī ḳhair ḳhabar_
_Chalo 'farāaz' ko aye yaar chal ke dekhte haiñ_

_Aañkh se duur na ho dil se utar jāegā_
_Waqt kā kyā hai guzartā hai guzar jāegā_       

_बर्बाद करने के और भी रास्ते थे फ़राज़_
_न जाने उन्हें मुहब्बत का ही ख्याल क्यू आया_
_Barbaad karne ke aur bhi raaste the Faraaz_
_Na jane unhe muhabbat ka hi khyal kyun aaya_  

_तू भी तो आईने की तरह बेवफ़ा निकला फ़राज़_
_जो सामने आया उसी का हो गया_

_Tu bhi to aaine ki tarah bewafa nikal Faraaz_
_Jo samane aaya usi ka ho gaya_.  

_मैंने आज़ाद किया अपनी वफ़ाओं से तुझे_
_बेवफ़ाई की सज़ा मुझको सुना दी जाए_

_Maine aazad kiya apni wafaao se tujhe_
_Bewafaai ki saza mujhko suna di jaye_

छोटी सी जिंदगी है,
किस किस को खुश करें साहब।             
जलाते हैं गर चिराग़,
तो अंधेरे बुरा मान जाते हैं।
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*[26-02 -2017]*                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                          ये दिल था के तरसता था मरासिम के लिए।
 अब यही तर्क ए तालुक के बहाने मांगे।

 मरासिम  यानी ताअलुक, relation      

मशहूर होने का शौक़ किसे है।
मुझे तो मेरे अपने ही ठीक से पहचान लें,तो भी काफ़ी है

[2/26, 6:03 PM]RNF
कुछ बेहतरीन शब्द पढे़. बहुत गहराई है इनमें..         
बिना लिबास आए थे इस जहां में,
 बस एक कफ़न की खातिर, इतना सफर करना पड़ा
      ===============
 समय के एक तमाचे की देर
       है प्यारे,
 मेरी फकीरी भी क्या,
      तेरी बादशाही भी क्या..
      ==============
 जैसा भी हूं अच्छा या बुरा
      अपने लिये हूं,
 मै खुद को नही देखता औरो
      की नजर से..
     =================
 मुलाकात जरुरी हैं,
   अगर रिश्ते निभाने हो,
 वरना लगा कर भूल जाने से
       पौधे भी सूख जाते हैं..
      ================
नींद आए या ना आए,
      चिराग बुझा दिया करो,
 यूँ रात भर किसी का
     जलना, हमसे देखा नहीं
      जाता..
     ===============
मोबाइल चलाना अब जिसे
      सिखा रहा हूँ मैं,
पहला शब्द लिखना उसने
     मुझे सिखाया था..
      ==============
 यहाँ हर किसी को,
    दरारों में झांकने की आदत है,
दरवाजे खोल दो तो कोई
       पूछने भी नहीं आएगा..
    =================
तू अचानक मिल गई तो
      कैसे पहचानुंगा मैं,
ऐ खुशी....तू अपनी एक
      तस्वीर भेज दे..
   =================
इसी लिए तो बच्चों पे नूर
     सा बरसता है,
शरारतें करते हैं, साजिशें तो
     नहीं करते..
     =================
महँगी से महँगी घड़ी पहन
     कर देख ली,
वक़्त फिर भी मेरे हिसाब से
     कभी ना चला..
 ===================

यूं ही हम दिल को साफ रखा
      करते थे ..
 पता नही था की, ‘कीमत
      चेहरों की होती है..
   ==================

दो बातें इंसान को अपनों से
     दूर कर देती हैं,
एक उसका ‘अहम’ और
     दूसरा उसका ‘वहम’..
  ==================

पैसे से सुख कभी खरीदा
     नहीं जाता,
 और दुःख का कोई खरीदार
     नहीं होता.
    =================

 मुझे जिंदगी का इतना
      तजुर्बा तो नहीं,
 पर सुना है सादगी में लोग
       जीने नहीं देते.

[2/26, 6:16 PM]: 
अजीब चलन है दुनिया का-
दीवारों में आये दरार तो
          दीवारें गिर जाती हैं...
पर रिश्तों में आये दरार तो
          दीवारे खड़ी हो जाती हैं...!

ख़्वाहिशों के क़ाफ़िले 
 बड़े अजीब होते हैं,
ये गुज़रते वहीं से हैं 
 जहाँ रास्ते नहीं होते । 

 ग़ज़ब का हौसला दिया है
 खुदा ने हम इन्सानों को,
वाक़िफ़ हम अगले पल से भी नहीं 
 और वादे ज़िंदगी भर के होते है 

 खामोश बैठें तो लोग कहते हैं 
 उदासी अच्छी नहीं, 
ज़रा सा हँस लें तो 

 मुस्कुराने की वजह पूछ लेते हैं.

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[11/28, 12: *मेहनत से उठा हूँ, मेहनत का दर्द जानता हूँ,_*
*आसमाँ से ज्यादा ज़मीं की कद्र जानता हूँ।*

*लचीला पेड़ था जो झेल गया आँधियाँ,*
_*मैं मग़रूर दरख़्तों का हश्र जानता हूँ।*

_*छोटे से बड़ा बनना आसाँ नहीं होता,* 
   *जिन्दगी में कितना ज़रुरी है सब्र जानता हूँ।*

*मेहनत बढ़ी तो किस्मत भी बढ़ चली,*
*छालों में छुपी लकीरों का असर जानता हूँ।*

*कुछ पाया पर अपना कुछ नहीं माना,*

_*क्योंकि आख़िरी ठिकाना मेरा मिट्टी का घर जानता हूँ।*


तू कर ले हिसाब, अपने हिसाब से
 लेकिन ऊपर वाला लेगा हिसाब,अपने हिसाब से

जिन्हें फ़िक़र थी कल की वे रोए रात भर
जिन्हें यकीन था रब पर वे सोए रात भर।
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[11/1, 7:03 PM] DSU 
میں 'پیار' لکھتا رھا وہ 'پیاز' پڑھتی رھی۔۔۔
ایک نقطے نے میری محبت کا سالن بنا دیا۔۔۔

मै प्यार लिखता रहा वो प्याज पढ़ती रही।
एक नुक्ते ने मेरी मुहब्बत का सालन बना दिया।
پیار        प्यार

پیاز    प्याज
 नुक्ता म्हणजे टिम्ब dot.

[10/30, 11:59 PM] DAD
*कितने बेबस हैं तेरी चाहत में..!!*
*तुझे खो कर भी ,अब तक तेरे हैं.!!*


 [10/30, 11:36 PM] DVK
टिचभर दुःखाची वीतभर कविता
सध्या मी फिरतेय ...
माझ्या कवितांची झोळी घेऊन  इथे तिथे सगळीकडे.
झोळीत आहेत माझ्या मलाच भासणाऱ्या डोंगराएवढ्या  दुःखांच्या कविता.
माझं स्वप्न,   माझं स्वप्न      म्हणून कवटाळतेय रोज 
ही मुळाक्षरं  केव्हापासुन.
पहिलं प्रेम, आला गेला सण, विरहाळलेंपण,   वैफल्य, ...,संसार...जुनाट आठवणी  कटकट .असमर्थता,..चिडचिड ......आजारपणानं वैतागलेलं आयुष्य,....... जगण्याची असहाय्य धडपड,.... तात्कालिक नैसर्गिक आपत्ती,... दमलेल्या बाबाची नाहीतर, आईच्या पदराला लोंबकळणाऱ्या, आणि उरल्याच तर जुनाट वाडे....    नाहीतर पाऊस तर आहेच, त्याच्या अगणित आठवणी......
अगदी अलीकडची  म्हणजे बाईपणाची कविता, शेतकऱ्यांच्या आत्महत्या, कुणाची जयंती, वाढदिवस, वर्धापन दिन,प्रकाशन समारंभ, तर कुणाची हाडं जळत असलेल्या स्मशानी कविता.
या सगळ्या कविता घेऊन फिरतेय कधीची...उन्हातान्हातुन...गावागावातून...
सगळ्या स्पर्धा, कविसंमेलनं पालथी घालतेय ...मिळेल तेव्हा…मिळेल तिथं.
वाजतात टाळ्या....
होते वाहवा...
मिळतं भरघोस बक्षीसही एखादीला.
होते खुश मीही ..
झालं ????
यापलीकडे काय?
मी माझ्याच फाटक्या दुःखाचे मांडलंय प्रदर्शन..
आणि  मिरवतेय सगळीकडे...

 जुन्या सामाजिक जाणिवांच्या वगैरे  लंब्या लंब्या 
कविता ऐकवते अगदी लोकांना कंटाळा येईपर्यंत.
त्याच त्याच ...पुन्हा पुन्हा वाचत असते जोरजोरात,....संमेलनांमधून.
आता तर अश्लील शब्दप्रयोग करून बाजारू केलं तिचं स्वरूप.. कारण मला हवंय नाव...प्रसिद्धी.
लागावेत पुरस्काराचे ढीग वगैरे घरात.
माझा biodata वाढायला हवा,कारण होईन निमंत्रित वगैरे.
फायली भरून सर्टिफिकेट्स डोकावतात अधूनमधून आणि सुखावते मीही.
बस ?? झालं समाधान ???      नाही नाही...अहो असं काय करता ?

मीडिया वर ,TV वर यायला हवीच की. 
सिनेमात एखादं गाणं यायला हवं माझं......tital सॉंग तरी....
वाढतच चाललंय अपेक्षांचं शेपूट.
मी माझी सगळी तत्व गुंडाळून ठेवलीत मुसक्या बांधून.

हा सगळा आटापिटा ज्या    कवितेसाठी...
ती मात्र दूर....दूर....जातेय माझ्यापासून,....
उथळ होताहेत संवेदना,,....,
माणुसकीची  ओल  मात्र खोल खोल तळाशी जातेय,ज्याची पुसटशी जाणीवही  नाही मला.
अंतर्मन जाणून आहे माझं ....खरं खोट्याचं भान...
कळतंय पण वळत नाही.
काल कुणीतरी म्हणालं .....खरा कवी होता बहुतेक,!!
जोपर्यंत संवेदना वैश्विक होत नाहीत तोवर उतरत नाही सच्ची कविता कागदावर.!
हे तर फार जड आहे काहीतरी, 
कारण मीच 'जड' झाले असावे.
वास्तवाच्या आगीत होरपळत नाही जी....
राजकारणाच्या गटारात कुजत चाललेली लोकशाही कुठेच दिसत नाही जिला....
तत्वांचे मुडदे पडताहेत...
कायद्यांची नाही तिला जाण...
वर्षानुवर्ष भेडसावणाऱ्या अगणित परंपरा...जातीव्यवस्था...धर्म...
...यातच खितपत पडलाय तिचा पांगळा देह...

जी होणार नाही कधीच *एखादी जिवंत मलाला*
छातीवर गोळ्या झेलायला तयार असणारी....

पण मला काय देणं घेणं याच्याशी ?

कारण मला तर फक्त  मिरवायचीत

 माझ्या फाटक्या झोळीत...

*टीचभर दुःखाची वितभर कविता*
@विनिता /मृणाल घाटे,पुणे.
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10/31
*बे सबब यूँ ही सर-ए-शाम निकल आते हैं,*
*हम बुलाएँ तो उन्हें काम निकल आते हैं।*

*इस दौरे सियासत का इतना सा फ़साना है*
*बस्ती भी जलानी है मातम भी मनाना है।*

 *सारी फितरत तो नकाबों में छुपा रखी थी​,*
*​सिर्फ तस्वीर उजालों में लगा रखी थी।*


*सच्चाई और अच्छाई की तलाश में पुरी दुनिया घूम ले...*
*अगर वह अपने में नहीं तो कही भी नहीं...*

अहम ने एक वहम पाल रखा है*
*कि......*
सबकुछ "मैंने ही" संभाल रखा है ।*

*ख़ुदावंद ये तेरे सादा-दिल बंदे किधर जाएँ,*
*कि दरवेशी भी अय्यारी है सुल्तानी भी अय्यारी।*


 *"कमाल" करते हैं हमसे "जलन" रखने वाले.!*
*"महफिलें" खुद की सजाते हैं,और चर्चे हमारे करते हैं..!!*

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 *ग़ज़ल: बशीर बद्र*
खुद को इतना भी मत बचाया कर,
बारिशें हो तो *भीग जाया कर*।
चाँद लाकर कोई नहीं देगा,
अपने चेहरे से *जगमगाया कर*।
दर्द हीरा है, दर्द मोती है,
दर्द आँखों से *मत बहाया कर*।
काम ले कुछ हसीन होंठो से,
बातों-बातों में *मुस्कुराया कर*।
धूप मायूस लौट जाती है,
छत पे *किसी बहाने आया कर*।
कौन कहता है दिल मिलाने को,
कम-से-कम *हाथ तो मिलाया कर*।


जिन्दंगी को समझना बहुत मुशकिल हैं जनाब
कोई सपनों की खातिर "अपनों" से दूर रहता हैं
और कोई "अपनों" के खातिर सपनों से दूर"।


*यूं ही न अपने मिज़ाज को चिड़चिड़ा कीजिये,*
*कोई बात छोटी करे तो आप दिल बड़ा कीजिये*


*मशहूर होने का शौक़ किसे है *
*मुझे तो मेरे अपने ही ठीक से पहचान लें, तो भी काफ़ी है*


*जिंदगी में कभी भी अपने किसी हुनर पे घमंड मत करना,*

*क्यूँकी पत्थर जब पानी में गिरता है तो अपने ही वजन से डूब जाता है।*


*कभी ना कहो की*
        *दिन अपने ख़राब है*
 *समझ लो की हम*
     *काँटों से घिर गए गुलाब है*

  *"रखो हौंसला वो मंज़र भी आयेगा;*
     *प्यासे के पास चलकर समंदर भी* 
                  *आयेगा..!*
*थक कर ना बैठो, ऐ मंजिल के मुसाफ़िर;*
            *मंजिल भी मिलेगी और*
   *जीने का मजा भी आयेगा...!!"*



भलाई करते रहिए बहते पानी की तरह
बुराई खुद ही किनारे लग जाएगी कचरे की तरह।

कल एक झलक ज़िंदगी को देखा,
वो राहों पे मेरी गुनगुना रही थी,
फिर ढूँढा उसे इधर उधर 
वो आँख मिचौली कर मुस्कुरा रही थी,
एक अरसे के बाद आया मुझे क़रार,
वो सहला के मुझे सुला रही थी  
हम दोनों क्यूँ ख़फ़ा हैं एक दूसरे से
मैं उसे और वो मुझे समझा रही थी,
मैंने पूछ लिया- क्यों इतना दर्द दिया कमबख़्त तूने,        
वो हँसी और बोली- मैं ज़िंदगी हूँ तुझे जीना सिखा रहीथी

सुना है लड़कियों को निहार ने से उम्र बढ़ती है 
मुझे तो डर लग रहा है कही अमर न हो जाऊ 

        *माना दुनियाँ बुरी है*
        *सब जगह धोखा है,*

    *लेकिन हम तो अच्छे बने*
         *हमें किसने रोका है..*  
       
 *रिश्तो की सिलाई अगर*
        *भावनाओ से हुई है*
       *तो टूटना मुश्किल है..*
   *और अगर स्वार्थ से हुई है,*
    *तो टिकना मुश्किल है..🏻*

[10/30, 8:05 PM] 
घरातली नेहमीची कामं
घाईघाईत आटोपताना
सकाळचा पेपर 
नजरेखालून जातो
ट्रेनच्या अपघातात
आज आणखी कोणाचातरी बळी
अपघात की आत्महत्या
पोलिस तपास सुरू
निश्चित सांगता येणं अशक्य!
विचार घोळत राहतात डोक्यात

मग गच्च भरलेल्या ट्रेनमधे
ओढणी ,स्वतःचे केस
हातातली पर्स
गळ्यातलं मंगळसूत्र
पायातली निसटती चप्पल
आणि शरिरातला निसटता जीव
सांभाळत ती ढकलून देते स्वतःला 
गर्दीच्या एका कोपऱ्यात
ट्रेनचा वाढता वेग
आणि हाताला सुटणाऱ्या घामाने
सैल होत जाते
पकडलेल्या खांबाची पकड
तेव्हा मनासारखं घडतंय म्हणत 
ती डोळे बंद करते
समोर 
वाट बघणाऱ्या पिल्लाचे डोळे दिसतात
अन ती पुन्हा
संपलेल्या ताकदीचा जोर लावत
ट्रेनच्या आतल्या डब्यात शिरते

चुकलंच का सगळं?
पुन्हा?
काय घडतं नेमकं?
सुटायला हवा
हातातून खांब
कधीतरी...तरीही

रिकाम्या ट्रेनमधे 
ती जेव्हा पुन्हा चढते
आजूबाजूला धक्का देणारं
कुणीच नसतं
तेंव्हा मोबाईलवरची गाणी ऐकत
हेडफोनवर आवाज स्पष्ट येत असतानाही
ती व्हॉल्यूम वाढवते
स्वतःचा आतला आवाज मग ऐकू येत नाही
ती पुन्हा
न सटकणारा खांब
पुन्हा घट्ट पकडते

मनात इतकंच ठरवते 
प्रयोग करायचेच आहेत
तर "जगण्यावर" करून बघू
- स्वाती शुक्ल


[10/30, 8:54 PM]  *ही कविता नसून औषध आहे:*

*डिप्रेशन मधून बाहेर पडण्यासाठी*

माणूस काय करतो ?

कुढतो जास्त ,
अन रडतो कमी !
म्हणून त्याचं हृदय ,
धडधडत असतं नेहमी !

                बोलणं कमी झाल्यामुळे ,
                   प्रश्न निर्माण झालेत !
                     सारं काही असूनही ,
                    एकलकोंडे  झालेत !

भावनांचा कोंडमारा ,
होऊ देऊ नका !
हसणं आणि रडणं ,
दाबून ठेऊ नका !

                आपल्या माणसांजवळ ,
                    व्यक्त झालं पाहिजे !
                   खरं खरं दुःख सांगून ,
                   मोकळं रडलं पाहिजे !

हसण्याने , रडण्याने ,
दबाव होतो कमी !
भावनांचा निचरा ,
ही Fresh होण्याची हमी !

             कुणाशी तरी बोला म्हणजे ,
                  हलकं हलकं वाटेल !
                 दुःख जरी असलं तरी ,
                   मस्त जगावं वाटेल !

येऊद्यानं कंठ दाटून ,
काय फरक पडतो  ?
*आपल्या माणसाजवळच*,
गळ्यात पडून रडतो !

            *आपली माणसं* , *आपली माणसं* ,
              बाजारात मिळत नसतात !
                 नाती-गोती जपून ती ,
               निर्माण करावी लागतात !

भौतिक साधनं जमवू नका ,
*आपली माणसं* जमवा !
नाहीतर तुम्ही गरीब आहात ,
कितीही संपत्ती कमवा !

                 हाय , हॅलो चे मित्र बाबा ,
                  काही कामाचे नसतात !
                   तुझी पाठ वळली की ,
                     कुत्सितपणे हसतात !

हसण्यासाठी , रडण्यासाठी ,
माणसं जपून ठेव !
नाहीतर मग घरात एखादा ,
" रोबोट "तरी  आणून ठेव !

              रोबोटच्याच गळ्यात पडून ,
                   हसत जा , रडत जा !
                  शांत झोप येण्यासाठी ,
                  दररोज गोळ्या घेत जा !

दुःख उरात दाबून वेड्या ,
झोप येत नसते !
हसत खेळत जगण्यासाठी 
माणसांचीच गरज असते ,

                   इथून पुढे भिशी कर ,
              हसण्याची अन रडण्याची !
               हीच खरी *औषधं* आहेत ,
            *डिप्रेशनच्या* बाहेर पडण्याची !!

......वरील कवितेचे कवी माहीत नाही .....

जगणे म्हटले तर खूप अवघड
म्हटले तर सोपे आणि सहज
छोटे छोटे प्रसंग सांगतात सत्य - असत्य
म्हटले तर शिकवण नाहीतर नुसतीच वण वण


कोणीतरी लिहिली
अन मला पाठवली
मला भावली आणि त्याहून जास्त पटली

आप्तेष्टांची काळजी वाटली म्हणून फॉरवर्ड  केली

[10/30, 3:50 PM] *तोंद *
पेट के तोंद मे बदलने का अंदेशा सबसे पहले तोंद के मालिक को ही होता है पर असमंजस बना रहता है पहले कुछ महिनो तक ! वो उसे पेट ही कहता रहता है ! उसके अस्तित्व से ही इनकार करता है ! 
हल्के से लेता है वो अपनी तोंद को ! समझाता है वो खुद को कि ये लगातार हो रहे शादी ब्याहो मे उडाये गये तर माल का नतीजा भर है ! उसे लगता है पिछले कुछ दिनो से पूरी ना हो सकी नींद की वजह से हुआ है ऐसा और जल्दी ही वह अपने पुराने शेप मे लौट आयेगा ! 
नयी नयी तोंद के मालिक को लगता है कि ये मौसमी वायरल टाईप की ,भरी जवानी मे हुये मुँहासो जैसी ही कोई चीज है ! जिसे बिना इलाज के एकाध हफ्ते मे खुदबखुद ठीक हो ही जाना है ! 
पर ऐसा होता नही ! हफ्ते महिनो मे बदलते है वो वो नामुराद चीज उसके सीने से नीचे और कमर के ऊपर बेशरमी से अपना आयतन बढाती रहती है ! 
बीबी बच्चे टोकने लगते हैं ऐसे में ! वो बीबी के माथे मढता है अपनी तोंद ! उसके बनाये खाने को ,उसके जिद करके खरीदे गये टीवी को ,रोज रोज आते त्यौहारो को ,अपने बाप ,दादाओ की तोदों सी आनुवांशिकता को इसका जिम्मेदार बताता है ! तोंद का जिक्र होते ही मुँह बनाता है ! लडने भिडने पर ऊतारू होता है और घर का माहौल खराब कर देता है ! चाहता ही नही कोई यह नाजुक मुद्दा छेडे ! बीबी बच्चे जल्दी ही समझदार हो जाते है ऐसे मे और तोंद अनदेखी की जाने लगती है ! 
पर तोंद को पसंद आता नही अनदेखा किया जाना ! वह शर्ट के बटन तोड कर प्रगट हो जाना चाहती है ! हो ही जाती है ! मजबूर कर देती है बंदे को कि शर्ट इन करना छोड दे ! बहुत बार शर्ट हाथ खडे कर देती है तब कुरता इज्जत बचाने की जिम्मेदारी उठाने आगे आता है ! 
बीबी बच्चे मन मार कर भले ही तोंद की तरफ से आँखे फेर लें पर कमीने दोस्त यार मानते नही ! मजे लिये जाते है तोंद के मालिक के ! तोंद के फायदे समझाने के साथ साथ उसे तोंद के निकल आने के ऐसे ऐसे कारण बताते है जो केवल खून जलाते हैं ! तोंद से पीछा छुडाने के ऐसे ऐसे जानलेवा तरीके भी बताना भी दोस्त अपना फर्ज समझते है जिन्हे अमल मे लाने के चक्कर मे बंदे की जान जाते जाते बचती है ! 
बहुत बार तानो से प्रेरित भी होता है वो ! लडता है वो अपनी तोंद से ! कसम उठाता है कि वो वापस अपनी तेईस साल की उम्र वाला पेट हासिल करके ही दम लेगा ! अपने लिये कठिन टाईम टेबल तय कर लेता है वो ! नये मँहगे स्पोर्ट्स शू खरीदता है ! सुबह जल्दी उठकर घूमने जाना शुरू होता है ! क्या खाना है ! कितनी पीना है जैसे महत्वपूर्ण बिंदुओ को भी इस टाईम टेबल मे जगह दी जाती है ! नजदीकी जिम की साल भर की फीस एडवान्स मे भर दी जाती है ! कपालभाति और अनुलोम विलोम भी जिंदगी मे चले आते हैं ! आयुर्वेद के मरियल से डॉक्टरो की सलाहो पर अमल भी होता है ! यह सिलसिला चलता भी है कुछ दिन ! फिर कभी अचानक लेट नाईट पार्टी हो जाती है ! मौसम अचानक खराब हो जाता है ! सुबह सुबह बॉस को लेने एयरपोर्ट  भी जाना पडता है बंदे को ! कभी कभी पीठ की कोई नस खिंच जाती है ! नतीजा वही निकलता है इसका ! स्पोट्स शू पर धूल जमने लगती है और तोंद चीन की तरह चुपचाप अपना इलाका बढाने मे लगी रहती है ! 
तोंद और आदमी की लडाई मे तोंद हमेशा बाजीराव पेशवा साबित होती है ! आपको हथियार डालने ही पडते है इस अजेय योद्धा के सामने ! घुटने टेकता है वो अपनी तोंद के सामने और संधि करने पर विवश होता है !
ऐसे में अब क्या करे आदमी ! वो अनचाहे गर्भवती हो गयी महिला की तरह बर्ताव करता है ! ढीले कपडे पहनना शुरू करता है अब वो ! कुछ समय पहले ही खरीदी गई पेंट के बगावती हुको को नजरअंदाज कर अगली साईज का पेंट खरीदता है ! फोटो शूट करते वक्त साँस बाहर छोडता है और तब तक साँस नही लेता जब तक फोटोग्राफर क्लिक ना कर दे ! अपनी फोटो तब तक एडिट करता है जब तक उसमे से तोंद अन्तर्ध्यान ना हो जाये ! 
तोंद से पराजित आदमी सोफे मे धँसे रहना स्वीकार कर लेता है ! अब टीवी पर बाबा रामदेव का पेट फुलाना ,पिचकाना प्रभावित नही करता उसे ! वो एक लार्ज पीत्जा ऑर्डर करता है और चैनल बदल देता है ! मान लेता है कि वो अब अपने घुटने कभी नही देख पायेगा ! 
! स्मार्ट लोगो की संगत से बचता है अब वो ! अपने जैसे तोंद के मालिक पंसद आने लगते हैं उसे ! उसके तर्क अपनी तोंद को सपोर्ट करते हैं अब ! मामूली बात है ये यार ! क्या फर्क पडता है ! किसकी नही होती तोंद ! खाये पिये लोगो की निशानी है ये भाई ! एक उम्र के बाद तो सबकी निकल आती है ये ! हमारी भी है तो है ! 
तोंद का निकलना ,निकले रहना जन्म मरण सा ही विधि हाथ है ! यदि ये आपका नक्शा बिगाड कर पाकिस्तान की तरह पैदा हो ही चुकी है तो मान लीजिये कि वह है !  इससे लडना समय और धन की बरबादी ही है और कुछ नही ! 
जीना सीखिये अपनी तोंद के साथ इसी मे सार है !


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